अपनी केंद्रीय भौगोलिक स्थिति के कारण, भारत दक्षिण एशिया के सात देशों, अर्थात् अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान के साथ 15,000 किलोमीटर से अधिक लंबी अंतर्राष्ट्रीय भूमि सीमा साझा करता है। व्यक्तियों, सामग्री और वाहनों की सीमा पार आवाजाही के लिए कई निर्दिष्ट प्रवेश और निकास बिंदु हैं। कई वर्षों से, निर्दिष्ट सीमा चौकियों पर अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा अक्सर क्षेत्रीय व्यापार के लिए प्रमुख बाधाओं में से एक रहा है, जो पड़ोसी देशों में और बाहर जाने वाले सामग्री और यात्रियों दोनों की आवाजाही को बाधित करता है। गोदाम, पार्किंग स्थल, बैंक, होटल आदि जैसी अनिवार्य सुविधाएं या तो अपर्याप्त हैं या अनुपस्थित हैं। सभी नियामक और समर्थन कार्य आम तौर पर एक परिसर में उपलब्ध नहीं होते हैं। पास में स्थित होने पर भी, विभिन्न सरकारी प्राधिकरणों और सेवा प्रदाताओं के समन्वित कामकाज के लिए कोई एक संस्था जिम्मेदार नहीं है।
सीमा चौकियों पर अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और भारत की भूमि सीमाओं पर, सीमा पार व्यापार और यात्रियों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए जिम्मेदार एकल समन्वय निकाय की कमी के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए सन् 2003 में सचिवों की समिति ने ऐसी एकीकृत जाँच चौकीयों की स्थापना एक ही स्वच्छता परिसर में रखते हुए गोदामों, निरीक्षण शेड, पार्किंग वे, वेहब्रिज इत्यादि जैसी अत्याधुनिक आधारभूत सुविधाएं प्रदान करेगी।
भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण की स्थापना
सचिवों की समिति ने एकीकृत जाँचचौकियों की स्थापना की सिफारिश की।
सचिवों की समिति ने भा.भू.प.प्रा. की स्थापना के लिए अंतर-मंत्रालयी कार्य समूह की रिपोर्ट की सिफारिश की।
सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति ने भा.भू.प.प्रा. की स्थापना को मंजूरी दी गई ।
संसद द्वारा भा.भू.प.प्रा. अधिनियम पारित हुआ।
भा.भू.प.प्रा. औपचारिक रूप से स्थापित हुआ।